- उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने कुलपति को व्यक्तिगत रूप से हलफनामा दाखिल करने का दिया आदेश
- एक्ट में प्रावधान हैं जिसमें बिना कार्यकारिणी परिषद के अनुमति लिए बगैर कुलपति नहीं ले सकते निर्णय
- आखिर क्यों नहीं जारी होता हैं सर सुंदरलाल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक के पद पर कोई नियुक्ति विज्ञापन ?
वाराणसी।। उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने टिप्पणी किया कि तत्कालीन कुलपति बनारस हिंदू विश्वविद्यालय बिना कार्यकारिणी परिषद के गठन और निर्णय के कार्य का संपादन कर रहे हैं, वह गैर कानूनी रूप से कुलपति कर रहे थे, जिस पर उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने व्यक्तिगत रूप हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है।
अधिवक्ता हरिकेष बहादुर सिंह ने बताया कि तत्कालीन कुलपति बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने अपने कार्यकाल में नियम विरुद्ध तरीके से गैर कानूनी काम करने के लिए जो लोग तैयार हुए उनको उक्त पद पर कार्यवाहक के रूप में नियुक्ति करके जो चाहे वे गैर कानूनी तरीके से कार्य करवाए, क्योंकि वर्तमान कुलपति ने गलत तरीके से अपने लगभग 50 मित्रों को आर्थिक लाभ देने के लिए एडवाइजर बनाया है।
अपने जानने वालों का प्रमोशन किये
उन्होंने अपने जानने वालों को तमाम महत्वपूर्ण पदों पर नई नियुक्ति किए, अपने जानने वालों का प्रमोशन किये, और जो लोग गैर कानूनी काम करने में सम्मिलित नहीं हुए उन अध्यापक व अधिकारीयों का प्रमोशन का समय होने बाद भी जानबूझकर प्रमोशन नहीं किये, जिससे नाराज होकर तमाम मुकदमा अध्यापक द्वारा उच्च न्यायालय में दाखिल किया गया है। उन्होंने कहा कि तत्कालीन कुलपति गैर कानूनी कार्य करने के लिए जानबूझकर कार्यकारिणी का गठन नहीं होने दिया और बिना कार्यकारिणी का गठन हुए, अपने आप को कार्यकारिणी का अध्यक्ष मानकर, बीएचयू एक्ट का दुरुपयोग करके नियुक्ति किए, गलत तरीके से लिफाफा भी खोल दिए, यही नहीं बजट का इस्तेमाल भी गैर कानूनी तरीके से गलत जगह खर्च करवाए।
गैर कानूनी तरीके उनके कार्य का संपादन
विश्वविद्यालय का जो अत्यंत महत्वपूर्ण पद हैं जैसे रजिस्टार, वह अन्य महत्वपूर्ण पद पर रेगुलर नियमित नियुक्ति करने का आदेश शिक्षा मंत्रालय से मिला था, उसे जानबूझकर नहीं किये। उन्होंने कहा कि यदि रेगुलर नियुक्ति हो जाता तो इनके गैर कानूनी कार्य को नहीं करते, इसलिए कुलपति ने गैर कानूनी कार्य को करने के लिए जो तैयार हुए उन्हें कार्यवाहक नियुक्ति करके गैर कानूनी काम करवायें, जिसके कारण इन्होंने कार्यकारिणी परिषद का बिना गठन हुए गैर कानूनी तरीके उनके कार्य का संपादन भी कर दिया।
तत्कालीन कुलपति एक्ट का कर रहे दुरुपयोग
उन्होंने कहा कि कुछ ऐसे एक्ट में प्रावधान हैं जिसमें बिना कार्यकारिणी परिषद के अनुमति लिए बगैर कुलपति निर्णय नहीं ले सकते जैसे फंड के इन्वेस्ट करने वाले इन्वेस्टमेंट कमेटी, वित्त समिति, भवन समिति एवं सीपीडब्ल्यूडी बिल्डिंग प्रोजेक्ट जो एक करोड़ रूपया से अधिक, गैर शैक्षणिक व शैक्षणिक ग्रुप ए के पदों की नियुक्ति एवं प्रमोशन तथा छात्र अधिष्ठाता, चीप प्राक्टर तथा समस्त संस्थाओं के निदेशक की नियुक्ति बिना कार्यकारिणी परिषद के अनुमति के बिना नहीं कर सकते हैं, यह एक्ट में प्रावधान दिया गया है, उसके बावजूद गैर कानूनी तरीके से तत्कालीन कुलपति एक्ट का दुरुपयोग करते हुए गैर कानूनी तरीके से कार्यकारिणी परिषद का कार्य संपादन कर रहे हैं।
कोरम पूरा करने के लिए गैर कागज लिफाफा में भर के भेज दिया जाता हैं
उन्होंने कहा कि कुलपति कार्यालय से सूचना जिन बिंदुओं पर मांगी जाती हैं, उन बिंदुओं का सूचना जानबूझकर नहीं देते हैं, कोरम पूरा करने के लिए गैर कागज लिफाफा में भर के भेज दिया जाता हैं। भारतीय लेखा परीक्षण और लेखा विभाग की ऑडिट रिपोर्ट के संबंध में सूचना नहीं मांगा था, परंतु उसकी छाया प्रति लिफाफा में करके भेज दिया गया, उक्त ऑडिट रिपोर्ट के अवलोकन से विश्वविद्यालय में हुए तमाम भ्रष्टाचार जिसमें आईओई, ट्रामा सेंटर अस्पताल, सर सुंदरलाल अस्पताल में तमाम भ्रष्टाचार का खुलासा रिपोर्ट में किया गया है, जिसमे वर्तमान कुलपति व उनसे संबंधित अधिकारी कर्मचारी के भ्रष्टाचार का खुलासा हो रहा है।
एक्ट में प्रावधान दिया गया है की एक्ट में कुछ ऐसा प्रावधान है बिना कार्यकारिणी के अनुमति के कुलपति नहीं कर सकते उसकी सूचना जानबूझकर संबंधित अधिकारी कर्मचारी कुलपति के प्रभाव में नहीं दे रहे हैं। जिन अध्यापको का प्रमोशन नहीं हुआ वे उच्च न्यायालय ने मुकदमा दाखिल किये। उच्च न्यायालय तत्कालीन कुलपति से सवाल किये है कि बिना कार्यकारिणी परिषद के गठन के कैसे उनके कार्य का संपादन करने का अधिकार कुलपति को है। इस संबंध में कुलपति से व्यक्तिगत रूप में हलफनामा शपथ पत्र फाइल करने का आदेश 25 सितंबर 24 को दिया गया है।
वहीं सूत्रों के हवाले से बताया गया कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में रजिस्ट्रार, वित्त अधिकारी, परीक्षा नियंत्रक एवं प्रति कुलपति जैसे सांविधिक पदों पर समयावधि समाप्त होने पर इन्हें समयबद्ध तरीके से भरना महत्वपूर्ण है। जिसके लिए समय-समय पर विज्ञापन निकाल कर पदों पर नियुक्ति किया जाता हैं, इसी प्रकार विश्वविद्यालय के सर सुंदरलाल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक के पद पर कोई नियुक्ति विज्ञापन नहीं जारी किया जाता हैं, जबकि वह पद भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण पद हैं।