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गड्ढों में धंसी विकास की गाड़ी, सिंगरौली की पीड़ा जारी

शशिकांत कुशवाहा

By शशिकांत कुशवाहा

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The vehicle of development is stuck in potholes, Singrauli's suffering continues
  • गड्ढों में धंसी विकास की गाड़ी, सिंगरौली की पीड़ा जारी

  • सिंगरौली देता है अरबों का राजस्व, बदले में मिलते हैं गड्ढे और सब्र की परीक्षा

सीधी/सिंगरौली। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 39, जो सीधी से सिंगरौली को जोड़ता है, विगत एक दशक से ज़्यादा का समय बीत चुका है और यह सड़क आज भी निर्माणाधीन है अब ‘राष्ट्रीय हाइवे’ कम और ‘गड्ढों के नाम’ ज़्यादा जाना जाने लगा है। एक तरफ जहां सिंगरौली जिला देश की ऊर्जा राजधानी कहलाता है, वहीं दूसरी तरफ यहाँ की सड़कें मानो कोयले की राख में ही मिल गई हों।हर साल अरबों का राजस्व दिल्ली-भोपाल रवाना करता है सिंगरौली, लेकिन वापस आता है सिर्फ “निर्माणाधीन” बोर्ड, अधूरी सड़कें और नेताओं की घिसी हुई घोषणाएं। गड्ढों से टकराते लोग अब कहते हैं “हम टैक्स नहीं देते, टैक्स से ठोकर खाते हैं।”

अरबों का योगदान.. सड़कें फिर भी बेजान

एनसीएल, एनटीपीसी , अदानी, रिलायंस, और दर्जनों पॉवर प्लांट्स से भरपूर सिंगरौली जिला केंद्र और राज्य सरकार को हर साल हजारों करोड़ रुपए का राजस्व देता है।लेकिन जब बात बुनियादी सुविधाओं की आती है, तो सरकारें कान में तेल डालकर सो जाती हैं — या शायद सड़क गड्ढों में उनका ध्यान ही नहीं जाता।सांसद विधायक सहित प्रभारी मंत्री और वर्तमान डिप्टी सीएम भी इस हालात से बखूबी वाकिफ हैं। इतना ही नहीं जिले का डीएमएफ और सीएसआर से खजाना भरा हुआ है फिर भी सिंगरौली की गिनती पिछड़े जिलों में होती है ।

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सिंगरौली की सड़कों पर साक्षात यमराज

एनएच-39 पर सफर करना ऐसा है जैसे ज़िंदगी की बीमा पॉलिसी हाथ में लेकर ही घर से निकलना पड़े। सड़कें ऐसी की एंबुलेंस को भी झटका लग जाए।यहाँ की सड़कों पर होने वाले हादसों को देखकर लोगों के मन में कई सवाल है, कई बार लोग पूछ बैठते हैं “सड़क है या साजिश?”परसौना से लेकर माड़ा सरई मार्ग खस्ताहाल सड़क और आए दिन होने वाले सड़क हादसे इस बात का प्रमाण है कि सिंगरौली की सड़कों पर साक्षात यमराज रहते हैं

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जनता ने व्यक्त की अपनी पीड़ा

सिंगरौली में अन्य प्रांत के निवासी तंज कसते हैं और कहते हैं की यदि सवाल नौकरी का न होता तो सिंगरौली छोड़ देते पर मजबूरी है। कनेक्टिविटी के नाम पर पिछड़ा हुआ है जिला।

वहीं कई स्थानीय लोगों का कहना है कि हमारे कोयले से पूरा देश रोशन है, लेकिन हमारे गांव के बच्चे स्कूल पैदल और कीचड़ में चलते हैं।वहीं एनएच-39 ऐसी है कि बैलगाड़ी में बैठो या बोलेरो में मंज़िल से पहले झटकों से ही मिल जाता है ज्ञान।

नेताओ का अलग अलाप

मामले को लेकर नेताओ का अलग तर्क “काम प्रगति पर है। सड़क जल्दी बन जाएगी।”जनता ने सवाल खड़ा करते हुए कहा कब बनेगी सड़क ? जब चुनाव आ जाएगा या जब और उद्योग आकर हमारी धूल खा जाएँगे?सिंगरौली का दुर्भाग्य ये है कि वह देश को रोशनी देता है, लेकिन खुद अंधेरे और बदहाल सड़कों से जूझता है। एनएच-39 गड्ढों का प्रतीक बन गया है। विकास योजनाएं फाइलों में हैं और जनता गड्ढों में। अब इसे ही तो जनता का दुर्भाग्य कहेंगे

शशिकांत कुशवाहा

शशिकांत कुशवाहा

शशिकांत कुशवाहा बतौर पत्रकार सामाजिक विषयों और समसामयिक मुद्दों पर लिखते है। उनका लेखन समाज में जागरूकता लाने, शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास जैसे विषयों पर केंद्रित रहता है। वे सरल भाषा और तथ्यपरक शैली के लिए जाने जाते हैं।

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