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रीवा संभाग में ‘बीमार’ है स्वास्थ्य व्यवस्था, मंत्री के गृहक्षेत्र में ही इलाज के लाले

शशिकांत कुशवाहा

By शशिकांत कुशवाहा

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The health system is 'sick' in Rewa division,
  • रीवा संभाग में ‘बीमार’ है स्वास्थ्य व्यवस्था, मंत्री के गृहक्षेत्र में ही इलाज के लाले

रीवा/सतना/सीधी/सिंगरौली।। प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री एवं उपमुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल का गृहक्षेत्र रीवा संभाग इन दिनों खुद इलाज का मोहताज बना हुआ है। मंत्रीजी जहां राजधानी में स्वास्थ्य सुधार के दावे कर रहे हैं, वहीं उनके अपने संभाग में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।व्यवस्थाएं बदलने की बात तब होगी, जब वादे धरातल पर उतरेंगे। वरना मरीज ठेले पर लादे जाते रहेंगे और सिस्टम चुपचाप तमाशा देखता रहेगा।

चिकित्सकों की भारी कमी, मरीज बेहाल

सीधी, सिंगरौली और सतना जिलों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों की भारी कमी है। कई अस्पतालों में एक भी विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं हैं। प्रसव सुविधाएं नदारद हैं। ग्रामीण महिलाएं निजी अस्पतालों की महंगी फीस देने को मजबूर हैं।

सिंगरौली सहित पूरे रीवा संभाग में यह एक आम तस्वीर बनती जा रही है कि सरकारी चिकित्सक सरकारी अस्पतालों में कम समय देते हैं, जबकि उनका झुकाव निजी क्लीनिक या नर्सिंग होम की ओर ज्यादा होता है। सुबह की ओपीडी में कुछ घंटे की औपचारिक उपस्थिति के बाद, कई डॉक्टर निजी प्रैक्टिस में जुट जाते हैं, जहां उन्हें सीधा आर्थिक लाभ होता है।

नतीजा यह होता है कि जिला अस्पताल और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में मरीज घंटों इंतजार करते हैं, लेकिन उन्हें न तो समय पर डॉक्टर मिलते हैं और न ही समुचित इलाज। यह स्थिति न केवल सरकारी सेवाओं की गरिमा को ठेस पहुंचा रही है, बल्कि गरीब मरीजों को जबरन निजी इलाज की ओर धकेल रही है, जिसे वे आर्थिक रूप से वहन नहीं कर सकते। स्वास्थ्य विभाग के नियमों के बावजूद इस पर न तो कोई सख्ती दिखती है और न ही नियमित निगरानी।

घोषणाएं खूब, अमल कम

घोषणाएं तो खूब होती हैं, लेकिन अमल के स्तर पर तस्वीर बिल्कुल अलग नजर आती है। उपमुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र शुक्ला ने कुछ माह पूर्व पूरे प्रदेश में 30,000 स्वास्थ्यकर्मियों की भर्ती का एलान किया था, जिसमें 3,000 डॉक्टर शामिल होने थे। इस घोषणा से जनता को उम्मीद जगी थी कि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों और स्टाफ की कमी दूर होगी, लेकिन धरातल पर इसका कोई ठोस असर अब तक दिखाई नहीं दे रहा है।

The health system is 'sick' in Rewa division,

खासतौर पर रीवा संभाग, जहां से स्वयं मंत्री आते हैं, वहां स्थिति जस की तस बनी हुई है। न तो नए स्वास्थ्यकर्मी नियुक्त हुए हैं, न ही पुराने पदों को भरा गया है। यह सवाल अब गंभीर होता जा रहा है कि क्या यह घोषणा भी सिर्फ राजनीतिक बयान बनकर रह जाएगी, या वास्तव में इसका लाभ लोगों तक पहुंचेगा?

लोगों का सवाल — मंत्रीजी, क्या रीवा संभाग ही आपकी प्राथमिकता में नहीं?

रीवा संभाग की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था अब जनता को चुभने लगी है। जब प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री स्वयं इसी संभाग से हैं, तो यह उम्मीद की जाती है कि यहां के अस्पताल, प्राथमिक केंद्र और सुविधाएं आदर्श बनें, लेकिन वास्तविकता इसके ठीक उलट है। इलाज के लिए मरीज दर-दर भटक रहे हैं, डॉक्टर नदारद हैं, दवाएं उपलब्ध नहीं, और एम्बुलेंस सेवा जवाब दे चुकी है। ऐसे में लोगों के मन में स्वाभाविक रूप से यह सवाल उठ रहा है कि क्या रीवा संभाग मंत्रीजी की प्राथमिकताओं में शामिल ही नहीं है? क्या यह क्षेत्र सिर्फ घोषणाओं और नारों तक सीमित रह जाएगा, जबकि ज़मीनी हकीकत रोज़-ब-रोज़ और खराब होती जा रही है? जनता अब जवाब मांग रही है — और उम्मीद भी कि हालात बदले।

शशिकांत कुशवाहा

शशिकांत कुशवाहा

शशिकांत कुशवाहा बतौर पत्रकार सामाजिक विषयों और समसामयिक मुद्दों पर लिखते है। उनका लेखन समाज में जागरूकता लाने, शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास जैसे विषयों पर केंद्रित रहता है। वे सरल भाषा और तथ्यपरक शैली के लिए जाने जाते हैं।

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