फैशन अब सिर्फ ग्लैमर नहीं रहा, बल्कि टिकाऊ और जिम्मेदार इंडस्ट्री बन गया है। जानिए कैसे हाउते कॉउचर से लेकर सस्टेनेबल फैशन तक बदला इसका चेहरा।
भारत और दुनिया में बदलता फैशन : रैंप से रेस्पॉन्सिबिलिटी तक का सफर
कभी फैशन का मतलब था रनवे, स्पॉटलाइट और महंगे डिजाइनर कपड़े। लेकिन आज फैशन की परिभाषा बदल चुकी है। यह अब सिर्फ दिखावे की दुनिया नहीं रही, बल्कि एक गंभीर और जिम्मेदार उद्योग बन गया है जो रचनात्मकता और धरती दोनों के प्रति सजग है।

हाउते कॉउचर से सस्टेनेबल स्टाइल तक का बदलाव
पेरिस और मिलान की गलियों से निकली हाउते कॉउचर (Haute Couture) की परंपरा कभी फैशन की पहचान हुआ करती थी — हाथ से बने, सीमित एडिशन वाले शानदार वस्त्र। भारत में सब्यसाची, मनीष मल्होत्रा और तरुण तहिलियानी जैसे डिजाइनरों ने इस कला को नई ऊंचाई दी है। लेकिन यह फैशन सिर्फ कुछ लोगों तक सीमित था।
90 के दशक में जब ग्लोबलाइजेशन ने फैशन जगत में दस्तक दी, फास्ट फैशन ब्रांड्स जैसे ज़ारा और H&M ने इसे आम उपभोक्ताओं तक पहुंचा दिया। सस्ती कीमतों पर ट्रेंडी कपड़े तो मिल गए, लेकिन इसके पीछे छिपी पर्यावरणीय और मानवीय कीमत बहुत भारी थी।

फास्ट फैशन का अंधेरा पहलू
हर साल लाखों टन कपड़े कचरे में बदल जाते हैं। इनमें से अधिकतर सिंथेटिक मटेरियल से बने होते हैं जो दशकों तक मिट्टी या पानी में नहीं गलते। वहीं, डाईंग प्रक्रियाओं में लाखों लीटर पानी बर्बाद होता है। कामगारों की हालत भी चिंता का विषय बनी रही है।
यही वह क्षण था जब फैशन ने आत्ममंथन शुरू किया और सस्टेनेबल फैशन का दौर जन्मा — जो सिर्फ सुंदरता नहीं, जिम्मेदारी का प्रतीक है।

टिकाऊ फैशन की ओर नई दिशा
“कम खरीदो, मगर सही खरीदो” — यही मंत्र सस्टेनेबल फैशन का सार है। अब डिजाइनर कपड़ों से ज्यादा उनके प्रभाव पर ध्यान दे रहे हैं।
- इको-फ्रेंडली फैब्रिक, ऑर्गेनिक कॉटन और रिसाइकल्ड मटेरियल का इस्तेमाल बढ़ा है।
- Stella McCartney जैसी डिजाइनर एनिमल-फ्री प्रोडक्ट्स को बढ़ावा दे रही हैं।
- Gucci और Louis Vuitton जैसी लग्ज़री कंपनियां अब कार्बन न्यूट्रल सप्लाई चेन की दिशा में अग्रसर हैं।
- भारत में FabIndia, Reme, और Desi Weaves जैसे ब्रांड पर्यावरण के साथ स्थानीय कारीगरी को भी मुख्यधारा में ला रहे हैं।
डिजिटल युग का इको-फ्रेंडली फैशन
AI, 3D डिजाइनिंग और वर्चुअल ट्राय-ऑन तकनीक ने कपड़ों की बर्बादी में भारी कमी की है। ब्लॉकचेन से उपभोक्ताओं को यह पारदर्शिता भी मिल रही है कि उनका कपड़ा कहां और कैसे बना।

भारत की जड़ों में है सस्टेनेबल ट्रेंड
भारत की फैशन कहानी हमेशा हस्तशिल्प और हैंडलूम से जुड़ी रही है। आज यह परंपरा वैश्विक सस्टेनेबल मूवमेंट का हिस्सा बन चुकी है। राजस्थान की ब्लॉक प्रिंटिंग, वाराणसी की सिल्क और खादी फिर से ट्रेंड में हैं।
भारतीय उपभोक्ता अब ग्लैमर से ज़्यादा अर्थ और मूल्य तलाश रहे हैं — ऐसे ब्रांड जो समाज और प्रकृति दोनों के साथ न्याय करते हैं।
फैशन अब सिर्फ “क्या पहनते हैं” का सवाल नहीं, बल्कि “क्यों पहनते हैं” की समझ बन चुका है। यही परिवर्तन आनेवाले वर्षों में इस उद्योग की सबसे बड़ी पहचान होगा।










