विन्ध्य के शिव मंदिर, सदियों से आस्था और रहस्य की अमिट छवि…

By: News Desk

On: Sunday, July 27, 2025 7:35 AM

Shiva Temples of Vindhya: An indelible image of faith and mystery for centuries
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26 जुलाई 2025 | विन्ध्य, मध्यप्रदेश। रिपोर्ट : स्पेशल संवाददाता

मध्यप्रदेश का विन्ध्य अंचल न सिर्फ अपनी प्राकृतिक सुंदरता, बल्कि देश ही नहीं, बल्कि विश्व की सबसे प्राचीन शिव आराधना की परंपरा के लिए जाना जाता है। यहाँ की धरती शिवभक्ति, रहस्य और ऐतिहासिक मंदिरों के कारण आज भी विश्वभर के श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है। सावन के माह में तो यहां श्रद्धा का सैलाब उमड़ उठता है — हजारों भक्तों की आस्था इन मंदिरों के प्राचीन दरवाजों तक आकर हर रोज़ नया इतिहास रचती है।

चतुर्मुखनाथ मंदिर : चार मुखों वाली महाशक्ति

पन्ना जिले के नचने गांव, सतना के समीप, स्थित चतुर्मुखनाथ मंदिर अपने विशेष स्वभाव के लिए प्रसिद्ध है। लगभग 1,200 वर्ष पूर्व प्रतिहार काल के दौरान निर्मित, यह मंदिर एक ही पत्थर में भगवान शिव के चार अलग-अलग स्वरूपों का जीवंत प्रस्तुतीकरण करता है। मंदिर में शादी के बाद नववधु का आशीर्वाद लेने की परंपरा आज भी जीवंत है, वहीं भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा जारी खुदाई ने इस मंदिर की प्राचीनता में नए अध्याय जोड़ दिए हैं।

रीवा का महामृत्युंजय मंदिर : जहाँ मृत्यु भी ठहर जाती है

रीवा राजघराने के किला परिसर में स्थित महामृत्युंजय शिव मंदिर सदियों पुरानी कथाओं और अद्भुत मान्यता का केंद्र है। कहा जाता है यह अकेला शिवलिंग है जिसमें 1,001 छिद्र हैं और सावन के सोमवार को यहाँ श्रद्धालुओं का तांता सुबह से रात तक लगा रहता है। मान्यता है कि यहाँ पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय भी दूर हो जाता है।

बिरसिंहपुर का गैवीनाथ धाम : चमत्कार और आस्था का संगम

सतना जिले के बिरसिंहपुर का गैवीनाथ मंदिर अपनी विलक्षण कथा के लिए चर्चित है। जनश्रुति के अनुसार, औरंगजेब ने शिवलिंग खंडित कराने का प्रयास किया था, परंतु वहां अचानक मधुमक्खियों के झुंड ने उसे और उसकी सेना को भागने पर मजबूर कर दिया। आज भी यहाँ प्रत्येक सोमवार हजारों श्रद्धालु जुटते हैं, सावन में तो यह संख्या लाखों तक पहुँच जाती है।

Shiva Temples of Vindhya: An indelible image of faith and mystery for centuries

देववालाब का चमत्कारी शिव मंदिर

मऊगंज के देवतालाब मंदिर का इतिहास रहस्य से भरा है। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि यह विशाल शिवमंदिर एक ही रात में भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित किया गया था। इसे देख कहीं जोड़ नहीं दिखता और बिना दर्शन किए चारों धाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है।

अमरकंटक का ज्वालेश्वर महादेव : नर्मदा का आध्यात्मिक संगम

नर्मदा और सोन नदी के उद्गम स्थल अमरकंटक से सात किलोमीटर दूर बसा ज्वालेश्वर महादेव शिव मंदिर विद्वानों की दृष्टि में ‘महा रूद्र मेरु’ कहलाता है। किंवदंती है कि इस स्थल पर स्वयं भगवान शिव ने स्थापना की थी और आज भी यहाँ दूध व शीतल जल अर्पण से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है।

कालिंजर का नीलकंठेश्वर व अन्य गाथाएँ

बुंदेलखंड के कालिंजर किले के पश्चिमी भाग में स्थित प्राचीन नीलकंठ महादेव मंदिर शिवभक्ति की अनूठी शास्त्रीय धरोहर है। अद्भुत वास्तुशिल्प, प्राकृतिक स्रोत व स्वयंभू शिवलिंग इसकी पहचान हैं। कहा जाता है शिवलिंग पर सदा स्वेद (पसीना) निकलता रहता है, जो सागर मंथन के हलाहल पीने की महागाथा से जुड़ी अनुभूति मानी जाती है।

आज भी जारी हैं परंपराएँ और पूजा

विन्ध्य के अन्य मंदिर, भंवरसेन का चंद्रेह शिव मंदिर (तीसरी शताब्दी), रीवा-बनारस मार्ग पर देवतालाब शिवमंदिर, सतना के कष्टहरनाथ शिवलिंग, चित्रकूट का मत्स्य गजेन्द्रनाथ शिवमंदिर इत्यादि,न सिर्फ धार्मिक बल्कि लोकसाहित्य, लोककला व पुरातत्व के स्थायी केंद्र हैं।

विन्ध्य के इन मंदिरों में समाई है सदियों पुरानी आस्था, सांस्कृतिक सहभागिता और अदृश्य आध्यात्मिक ऊर्जा। सावन के दिनों में विन्ध्य की घाटियाँ ‘हर-हर महादेव’ के उद्घोष से गूंज उठती हैं। ये मंदिर न केवल इतिहास, धर्म, साहित्य, संस्कृति और रहस्य के, बल्कि भारतीय आत्मा के शाश्वत केंद्र हैं।

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