राजस्थान के झालावाड़ जिले के पिपलोदी गांव में शुक्रवार की सुबह दौड़ते-भागते बच्चों की मौत की चीखों में तब्दील हो गई। सरकारी मिडिल स्कूल की छत के अचानक गिरने से 7 मासूमों की जान चली गई और 30 से ज्यादा बच्चे बुरी तरह घायल हो गए। हादसा तब हुआ जब छात्र सुबह की प्रार्थना के लिए कक्षाओं में जुट रहे थे।
घटनास्थल पर हाहाकार, रेस्क्यू में जुटा प्रशासन
हादसे के बाद पूरा गांव घटनास्थल पर उमड़ पड़ा। मलबे में फंसे बच्चों को बचाने के लिए माता-पिता, ग्रामीण और पुलिसकर्मी हाथ में फावड़े लेकर जूझते रहे। कई बच्चों को गंभीर हालत में नजदीकी अस्पताल भेजा गया, जहां कुछ ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, स्कूल भवन की जर्जर हालत को लेकर पहले भी कई बार प्रशासन को शिकायतें दी गई थीं, लेकिन अनसुनी कर दी गईं।
राजनीति और प्रशासन की प्रतिक्रियाएं
हादसे के तुरंत बाद शिक्षा मंत्री और जिला प्रशासन मौके पर पहुंचे। सरकार ने सभी घायलों के इलाज का खर्च उठाने का ऐलान किया है। 5 स्कूल शिक्षकों को तत्काल निलंबित कर, उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए गए हैं। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने शोक जताते हुए दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
क्यों दोहराते हैं ऐसे हादसे, कौन है जिम्मेदार?
- स्कूलों की जर्जर इमारतें और उनकी समय-समय पर न जांच होना।
- नियमों के बावजूद भवनों की मरम्मत या पुनरुद्धार पर ध्यान नहीं।
- बारिश या प्राकृतिक आपदा के बाद इमारतों का आकलन न किया जाना।
- सुरक्षा गाइडलाइंस का ग्रामीण स्कूलों में पालन न होना।
- बच्चों और अभिभावकों की चेतावनी तक टाल दी जाती है।
क्या बदलाव जरूरी ?
2025 में CBSE ने सभी स्कूलों में CCTV कैमरा, सुरक्षा ऑडिट, प्रवेश-निकास चेक, इमरजेंसी ड्रिल, और इमारतों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के कड़े निर्देश जारी किए हैं। स्कूल बसों के लिए GPS, लिमिटेड स्पीड, ड्राइवर के बैकग्राउंड वेरिफिकेशन, और पैरेंटल मोनिटरिंग अब अनिवार्य हो चुके हैं। लेकिन ग्रामीण स्कूलों तक इन नियमों का पूरी सख्ती से पालन नहीं हो पाना चिंता का विषय है।










