भोपाल। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि प्रदेश के वनों में मौजूद आस्था स्थल सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन्हें स्थानीय लोग पारंपरिक रूप से संरक्षित करते आए हैं। मुख्यमंत्री ने ऐसे स्थलों को देवलोक वन के रूप में विकसित करने की जरूरत बताई।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि आस्था स्थलों को देवलोक वन के रूप में विकसित किया जाए। नदियों के किनारों पर पौधरोपण और नगर वनों के संरक्षण पर भी दिए निर्देश।
डॉ. यादव गुरुवार को मुख्यमंत्री निवास स्थित समत्व भवन में वन विभाग की गतिविधियों की समीक्षा कर रहे थे। उन्होंने कहा कि ये आस्था स्थल सिर्फ धार्मिक महत्व नहीं रखते, बल्कि जैवविविधता संरक्षण और पर्यावरणीय संतुलन में भी अहम भूमिका निभाते हैं।
मुख्यमंत्री ने नदियों के दोनों ओर 5 किलोमीटर क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पौधारोपण करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि पौधरोपण में औषधीय और उपयोगी पौधों को प्राथमिकता दी जाए। साथ ही स्थानीय समुदाय को इसमें जोड़ा जाए, ताकि उनकी आय में भी वृद्धि हो।
नदियों के संरक्षण पर जोर
डॉ. यादव ने कहा कि नदियों के किनारों से अतिक्रमण हटाने के लिए भी स्थानीय समुदाय का सहयोग लिया जाए। उन्होंने बताया कि इंदौर, उज्जैन और देवास क्षेत्र को मेट्रोपॉलिटन एरिया के रूप में विकसित किया जा रहा है। इसलिए क्षिप्रा नदी के संरक्षण की योजना उसी अनुसार बनाई जानी चाहिए।
नगर वनों का रखरखाव
मुख्यमंत्री ने नगर वनों के उचित विकास और रखरखाव पर भी बल दिया। उन्होंने कहा कि इन वनों का संरक्षण शहरों के पर्यावरण को बेहतर बनाने में मदद करेगा।
जलीय जीवों का महत्व
मुख्यमंत्री ने कहा कि मगरमच्छ, घड़ियाल और कछुए नदियों और जल संरचनाओं के स्वस्थ ईकोसिस्टम के लिए आवश्यक हैं। उन्होंने निर्देश दिए कि जहां इन जीवों की संख्या अधिक है, वहां से उन्हें दूसरी नदियों और जल संरचनाओं में शिफ्ट किया जाए। इसकी शुरुआत नर्मदा और तवा नदी से की जाएगी।
अन्य मुद्दों पर चर्चा
बैठक में वन ग्रामों को राजस्व ग्राम में बदलने, लघु वन उपज के न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने और तेंदूपत्ता बोनस वितरण जैसे विषयों पर भी चर्चा हुई। बैठक में अपर मुख्य सचिव वन श्री अशोक वर्णवाल, प्रधान मुख्य वन संरक्षक श्री व्ही.एन. अम्बाडे और अन्य वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे।










