Chikankari।। चिकनकारी एक पारंपरिक कढ़ाई शैली है जो भारत के लखनऊ शहर से संबंधित है। यह कढ़ाई अपने जटिल डिज़ाइन और बारीकियों के लिए प्रसिद्ध है, और इसे मुख्यतः हल्के कपड़ों जैसे कॉटन, जॉर्जेट, और मसलिन पर किया जाता है। चिकनकारी का शाब्दिक अर्थ “कढ़ाई” है, और यह एक अद्वितीय शिल्प कला है जो सदियों से चली आ रही है।
चिकनकारी का इतिहास। History of Chikankari
चिकनकारी की उत्पत्ति का श्रेय मुग़ल साम्राज्य की समृद्ध संस्कृति को दिया जाता है। कहा जाता है कि इस कढ़ाई को सबसे पहले मुघल सम्राट जहाँगीर की पत्नी नूरजहाँ ने भारत में पेश किया था। यह कढ़ाई सफेद धागे से की जाती है, जो हल्के रंगों के कपड़ों पर बहुत खूबसूरत लगती है।
चिकनकारी की तकनीक । Techniques of Chikankari
चिकनकारी में कई प्रकार की सिलाई तकनीकें शामिल होती हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
1-बखिया :
यह एक प्रकार की छाया कार्य है जो कपड़े के पीछे की ओर की जाती है, जिससे सामने छाया का प्रभाव बनता है।
2-हूल :
यह एक बारीक डिटैच्ड आईलेट स्टिच है।
3-जाली :
इसमें धागा कपड़े के माध्यम से नहीं खींचा जाता, जिससे पीछे का हिस्सा भी सुंदर दिखता है।
इस कढ़ाई में कुल 32 प्रकार की सिलाइयाँ होती हैं, जो इसे विशेष बनाती हैं।
चिकनकारी के कपड़े। Chikankari Fabrics
चिकनकारी आमतौर पर कुर्ता, कुर्तियाँ और दुपट्टों पर की जाती है। ये कपड़े न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी लोकप्रिय हैं। चिकनकारी कुर्तियाँ विभिन्न अवसरों के लिए पहनी जा सकती हैं और इन्हें जींस या प्लाजो के साथ भी जोड़ा जा सकता है।
आधुनिक ट्रेंड्स । Modern Trends
आजकल चिकनकारी में रंगीन धागों का भी उपयोग किया जाता है ताकि यह आधुनिक फैशन ट्रेंड्स के अनुसार हो सके। इसके अलावा, चिकनकारी में मुर्री, सीक्विन और दर्पण कार्य जैसे अतिरिक्त सजावटी तत्व भी जोड़े जाते हैं, जिससे इसकी सुंदरता बढ़ती है।