Chanderi Saree : मध्य प्रदेश अपनी प्राकृतिक सुंदरता, इतिहास और समृद्ध सांस्कृतिक और कलात्मक विरासत के लिए पूरे भारत में पहचाना जाता है। इस धरती ने हमें ऐसी अनोखी विरासत दी है, जो आज पूरे विश्व में अपनी सुंदरता और विशिष्टता का परचम लहरा रही है।
जहां एक तरफ आपको मध्य प्रदेश में आदिवासी कला के अनगिनत नमूने देखने को मिलेंगे, वहीं दूसरी तरफ इस राज्य ने हथकरघा के मामले में भी देश को बहुत कुछ दिया है। यहां की चंदेरी और महेश्वरी साड़ियां पूरी दुनिया में मशहूर हैं। हम आपको पहले भी कई साड़ियों के बारे में बता चुके हैं। आज हम आपको चंदेरी साड़ी की प्राचीनता और आसान इतिहास के बारे में बताएंगे।
चंदेरी साड़ी क्यों प्रसिद्ध है?
यह सिंधिया राजघराने के कार्यकाल से ही अपने हथकरघा के लिए प्रसिद्ध रहा है। मध्य प्रदेश की चंदेरी रेशम से बनी है जो चंदेरी के मंदिरों में पाए जाने वाले पैटर्न को दर्शाती है। चंदेरी कपड़ा सबसे पसंदीदा कपड़ों में से एक है जो गर्मियों के साथ-साथ सर्दियों के लिए भी उपयुक्त है।
चंदेरी की खासियत क्या है?
चंदेरी मध्य प्रदेश के अशोक नगर जिले में स्थित एक ऐतिहासिक शहर है। यहां बुंदेलों और मालवा के सुल्तानों द्वारा बनवाई गई कई इमारतें देखी जा सकती हैं। इसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। चंदेरी बुन्देलखण्डी शैली की साड़ियों के लिए बहुत प्रसिद्ध है।
क्या चंदेरी को गर्मियों में पहना जा सकता है?
गर्मियों के लिए, चंदेरी सूती कपड़ा बेहद आरामदायक और सांस लेने योग्य है। पारंपरिक शुद्ध रेशमी कपड़े गर्मियों के लिए बहुत उपयुक्त होते हैं।
तो आइए आज हम आपको चंदेरी साड़ियों के कुछ खूबसूरत और आकर्षक नमूने दिखाते हैं जो एक नजर में ही किसी भी महिला को पसंद आ जाएंगे। अगर आप गर्मियों में पहनने के लिए किसी अच्छी साड़ी की तलाश में हैं तो चंदेरी साड़ी से बेहतर कुछ नहीं हो सकता। चंदेरी साड़ियाँ गर्मियों में पहनने के लिए सबसे अच्छी होती हैं।
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चंदेरी रेशम साड़ी का नाम विंध्याचल पर्वत श्रृंखला के छोटे से शहर चंदेरी से लिया गया है। इस जगह का अपना एक समृद्ध इतिहास है। इस जगह का नाम आपको रामायण और महाभारत में भी मिलेगा। इस स्थान पर प्राचीन काल से ही कपड़े का उत्पादन होता आ रहा है और पहले यहां मलमल से चंदेरी रेशम का कपड़ा तैयार किया जाता था। इस कपड़े में इस्तेमाल किये जाने वाले मलमल के धागे बहुत पतले होते थे। इसलिए यह कपड़ा बहुत मुलायम होता है और बनारसी रेशम की तरह फूला हुआ नहीं बल्कि पारदर्शी होता है।
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चंदेरी रेशम का सबसे बड़ा विस्तार 13वीं या 14वीं शताब्दी में हुआ जब सूफी संत वजीउद्दीन बंगाल से चंदेरी आये। उनके साथ उनके कई भक्त भी आये थे। इन भक्तों में कुछ बुनकर और कढ़ाई करने वाले भी थे। तब से आज तक चंदेरी रेशम ढाका से लाये गये मलमल और कपास के मिश्रण से तैयार किया जा रहा है।
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पूरी चंदेरी साड़ी बनाने में 1 से 2 महीने का समय लगता है। बुनाई पहले की जाती है और कढ़ाई भी साथ-साथ की जाती है। इसके बाद साड़ी को रंगा जाता है। इसकी एक खासियत यह है कि साड़ी में कॉन्ट्रास्टिंग रंगों का चयन किया जाता है। जैसे नारंगी के साथ काला, काले के साथ नीला, लाल के साथ गुलाबी। इसके अलावा आपको बेज, क्रीम और आइवरी कलर में भी कई साड़ियां मिल जाएंगी। मौजूदा समय में बदलते फैशन के साथ अब आपको इसमें पेस्टल शेड्स भी देखने को मिलेंगे, जो साड़ी को और भी ग्रेसफुल लुक देते हैं।