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बरसात में बीजों से हरियाली की मुहिम, अनजाने में बनें पर्यावरण रक्षक

शशिकांत कुशवाहा

By शशिकांत कुशवाहा

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Campaign for greenery through seeds in rainy season, become environmental protector unknowingly

सिंगरौली ।। बरसात का मौसम सिर्फ ठंडक और सुकून ही नहीं लाता, बल्कि यह धरती को हरियाली की चादर ओढ़ाने का भी सुनहरा मौका होता है। ऐसे में अगर हम थोड़ी सी सजगता और पहल दिखाएं तो पर्यावरण की रक्षा में अहम भूमिका निभा सकते हैं—वो भी बिना किसी बड़े संसाधन या योजना के।

अक्सर हम बारिश के सीजन में आम, जामुन और नीम जैसे फलों को खाते हैं। इनके बीज या तो कचरे में फेंक दिए जाते हैं या यूं ही इधर-उधर पड़े रहते हैं। लेकिन अगर इन्हें धोकर एकत्र किया जाए और किसी लंबी यात्रा के दौरान या किसी सुनसान जगह से गुजरते समय सड़क किनारे या जंगलों में बिखेर दिया जाए, तो यह अनजाने में ही एक बड़ा वृक्षारोपण अभियान बन सकता है।

छोटा बीज, बड़ी शुरुआत

जमीन पर बिखरे ये बीज बारिश की मिट्टी और नमी के कारण स्वतः ही अंकुरित हो सकते हैं। खासकर नीम जैसे औषधीय पेड़ और जामुन जैसे फलदार वृक्ष न सिर्फ पर्यावरण के लिए फायदेमंद हैं, बल्कि पशु-पक्षियों को भी सहारा देते हैं।

पर्यावरण रक्षा में आमजन की भूमिका

यह पहल किसी संगठन या सरकारी योजना की मोहताज नहीं। कोई भी व्यक्ति—बच्चे, युवा या बुजुर्ग—अपने स्तर पर इसमें भागीदारी कर सकते हैं। यह छोटे-छोटे प्रयासों से हरियाली बढ़ाने की एक जन-आंदोलन जैसी भावना को जन्म देता है।

आप भी बन सकते हैं ‘बीज योद्धा’

अगर हर नागरिक अपने दैनिक जीवन में थोड़ी जिम्मेदारी और दूरदर्शिता अपनाए, तो हर साल लाखों पौधों की शुरुआत यूं ही घर के आंगन या सफर के दौरान हो सकती है।

उर्जांचल टाइगर की अपील

बारिश की हर बूँद की तरह हर बीज भी अमूल्य है। इसे व्यर्थ न जाने दें। इसे धरती मां को अर्पित करें, ताकि अगली पीढ़ी को शुद्ध हवा, छांव और फल मिल सकें। चलिए, इस मानसून हम सभी मिलकर बनें ‘हरियाली के प्रहरी’

शशिकांत कुशवाहा

शशिकांत कुशवाहा

शशिकांत कुशवाहा बतौर पत्रकार सामाजिक विषयों और समसामयिक मुद्दों पर लिखते है। उनका लेखन समाज में जागरूकता लाने, शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास जैसे विषयों पर केंद्रित रहता है। वे सरल भाषा और तथ्यपरक शैली के लिए जाने जाते हैं।

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