भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI), HDFC बैंक और ICICI बैंक को एक बार फिर देश के सबसे महत्वपूर्ण वित्तीय संस्थानों में शामिल किया है। RBI ने मंगलवार को घोषणा की कि ये तीनों बैंक 2025 के लिए भी Domestic Systemically Important Banks (D-SIBs) की सूची में शामिल रहेंगे।
क्यों खास हैं D-SIB बैंक?
D-SIB वे बैंक होते हैं जिनकी विफलता से देश की पूरी वित्तीय व्यवस्था पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए सरकार और RBI इन्हें “Too Big to Fail” संस्थान मानते हैं। इनकी सुरक्षा और स्थिरता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है।
RBI ने बयान में कहा
“SBI, HDFC Bank और ICICI Bank को 2024 की तरह 2025 में भी उसी बकेटिंग स्ट्रक्चर के तहत D-SIBs के रूप में पहचान दी गई है। इन बैंकों पर अतिरिक्त CET1 पूंजी आवश्यकता लागू होगी।”
अतिरिक्त CET1 पूंजी की अनिवार्यता
D-SIB बैंकों को आम बैंकों की तुलना में अतिरिक्त Common Equity Tier 1 (CET1) पूंजी रखनी होती है। यह पूंजी बैंकों को नुकसान सहने और जोखिमों को संभालने में मदद करती है।
हर बैंक को उसकी D-SIB श्रेणी (Bucket) के आधार पर अलग-अलग स्तर की अतिरिक्त पूंजी रखनी होती है।
D-SIB का इतिहास
RBI ने भारत में D-SIB की अवधारणा 2014 में शुरू की थी।
पहली बार D-SIB सूची में शामिल बैंक
- 2015 : SBI
- 2016 : ICICI Bank
- 2017 : HDFC Bank
D-SIB framework का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश की सबसे बड़ी बैंकिंग संस्थाएँ आर्थिक झटकों से निपटने के लिए पर्याप्त पूंजी के साथ तैयार रहें।
बैंकों की बकेटिंग और पूंजी आवश्यकताएँ
इस वर्ष भी तीनों बैंक अपनी-अपनी “बकेट” में शामिल किए गए हैं, जो उनके आकार और वित्तीय महत्व के आधार पर तय होती है।
नए CET1 नियम और Basel III पूंजी मानक 1 अप्रैल 2027 से लागू होंगे।
अर्थव्यवस्था के लिए क्यों जरूरी है यह कदम?
ये तीनों बैंक देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाते हैं।
उनके संचालन में किसी भी समस्या का असर सीधे
- आम जनता,
- बाजार,
- उद्योगों
और पूरी वित्तीय प्रणाली पर पड़ सकता है।
इसलिए D-SIB framework यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी संभावित संकट में सरकार और RBI इन संस्थानों को मजबूत बनाए रखें, ताकि देश की आर्थिक स्थिरता प्रभावित न हो।










