इटली के लक्ज़री फैशन हाउस Prada को एक बार फिर भारत में आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। इस बार विवाद का केंद्र Prada की नई एंटीक्ड लेदर पंप्स (Antiqued Leather Pumps) बनी हैं, जिन्हें भारतीय नेटिज़न्स ने पारंपरिक राजस्थानी जूतियों जैसा बताया है। पिछले महीने हुए कोल्हापुरी चप्पल विवाद की गर्माहट अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि अब ये नया मुद्दा उभर आया है, जिसमें फैशन इंडस्ट्री में सांस्कृतिक अनुकरण (Cultural Appropriation) को लेकर बहस तेज हो गई है।
क्या है विवाद ?
Prada ने अपने 2026 के मेन्स स्प्रिंग/समर कलेक्शन में एक जोड़ी एंटीक्ड लेदर पंप्स पेश की, जिन्हें कंपनी ने दावे के साथ “मूल और असामान्य डिज़ाइन” बताया। लेकिन भारतीय यूजर्स ने तुरंत इन हील्स और पारंपरिक राजस्थानी (या पंजाबी) जूतियों के बीच आश्चर्यजनक समानता पहचान ली। इन जूतियों का डिजाइन leather stitching, pointed toe और रंगों में काफी मिलता-जुलता है, हालांकि प्राडा ने अपने संस्करण में कोमल बदलाव किए हैं जैसे कि ऊँचा हील और आधुनिक लुक।
मगर बड़ी बात यह है कि Prada ने कहीं भी अपने उत्पाद के भारतीय सांस्कृतिक और ऐतिहासिक मूल की ओर इशारा नहीं किया, जिससे नेटिज़न्स और भारतीय कारीगर खासे नाराज हैं। उन्होंने प्राडा पर पारंपरिक डिज़ाइन को बिना किसी क्रेडिट या सहयोग के ग्लोबल मार्केट में पेश करने का आरोप लगाया है।
सोशल मिडिया पर Prada को लेकर क्या चल रहा है ?
सोशल मीडिया पर भारतीय यूजर्स ने Prada की आलोचना करते हुए कहा, “Prada ने फिर से भारतीय कारीगरों की मेहनत की चोरी की है,” और “जब भारतीय हस्तशिल्प ‘एथनिक’ कहलाता है, तब वही डिज़ाइन Prada के लिए ‘असामान्य’ बन जाता है।” इस प्रकार की टिप्पणियाँ फैशन की दुनिया में सांस्कृतिक सम्मान और पारदर्शिता की कमी पर विवाद को और हवा दे रही हैं।
अमृतसर के जूती कारीगर भी गंभीर रूप से प्रभावित हैं। वे मानते हैं कि इस तरह की नकल उनकी जीविका और सांस्कृतिक विरासत दोनों के लिए खतरा है। स्थानीय दुकानदारों ने सरकार से भी इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की है।
विवाद क्यों हुआ शुरू ?
इससे पहले जून- जुलाई 2025 में Prada ने कोल्हापुरी चप्पल से प्रेरित सैंडल्स को अपने पुरुषों के फैशन शो में शामिल किया था। उस समय भी भारतीय कारीगरों और सोशल मीडिया पर नाराज़गी देखी गई क्योंकि प्राडा ने उस डिज़ाइन की भारतीय जड़ों का कोई उल्लेख नहीं किया था। विवाद के बाद प्राडा ने महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स (MACCIA) और स्थानीय कारीगरों से बातचीत शुरू की थी, लेकिन तब भी टकराव की आशंका बनी रही।
अब दूसरा विवाद इस बात को लेकर बहस करता है कि क्या लक्ज़री फैशन ब्रांड्स पूरे मन से भारतीय संस्कृति और कारीगरों को सम्मान दे रहे हैं, या केवल उनके डिज़ाइनों को अनमोल बाज़ार में बेचने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
फैशन उद्योग में बढ़ता बहस
Prada जैसे अंतरराष्ट्रीय फैशन ब्रांड्स का पारंपरिक भारतीय डिज़ाइनों से प्रेरित होना कोई नई बात नहीं है। लेकिन जब वे इन डिज़ाइनों को बिना जुड़े या अधिकार दिए अपनाते हैं, तो यह विवादों को जन्म देता है। यह केवल भारत में ही नहीं, बल्कि वैश्विक फैशन संसार में सांस्कृतिक सम्मान और अनुकरण के मुद्दों को गर्माता है। विशेषज्ञ और डिजाइनर भी फ़ैशन हाउस से अधिक पारदर्शिता और कारीगरों को उचित क़र्ज़ देने की मांग कर रहे हैं।
कारीगरों बढ़ रही जागरूकता !
Prada का ये नया विवाद भारतीय लोकशिल्प और सांस्कृतिक विरासत की महत्ता को विश्व के सामने दोबारा रखता है और सवाल उठाता है कि क्या बड़े ब्रांड वास्तव में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सम्मान के साथ ऐसे डिज़ाइन प्रस्तुत कर रहे हैं या सिर्फ व्यावसायिक फायदा उठा रहे हैं।
इस पूरे विवाद से फैशन जगत में पारंपरिक डिज़ाइन की स्वामित्व, सम्मान और उनके कारीगरों के अधिकारों को लेकर जागरूकता बढ़ती दिख रही है, जो आने वाले समय में ब्रांड्स के लिए एक अहम चुनौती साबित हो सकती है।
- (लेखक : नौशाबा अंजुम, फैशन रिपोर्टर एवं पत्रकार)