नई दिल्ली : संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन सोमवार देर शाम भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा देकर राजनीतिक गलियारे में नई चर्चा छेड़ दी है। ये इस्तीफा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजा गया है और तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है। देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद पर बैठे धनखड़ का कार्यकाल अचानक छोड़ना अप्रत्याशित माना जा रहा है— खासकर ऐसे समय में, जब संसद की कार्यवाही अपने चरम पर है।
स्वास्थ्य को कारण बताते हुए पद छोड़ा
धनखड़ ने अपने इस्तीफे में कहा कि “स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देने और चिकित्सीय सलाह के चलते” वे उपराष्ट्रपति पद छोड़ रहे हैं। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 67(ए) का हवाला देकर त्यागपत्र दिया। अपने संदेश में उन्होंने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत पूरी मंत्रीपरिषद और सांसदों के प्रति आभार जताया, साथ ही पिछले दो वर्षों के कार्यकाल को ‘सम्मान और सौभाग्य’ बताया।
दो वर्षों की भूमिका और अचानक विदाई
अगस्त 2022 में उपराष्ट्रपति बने 74 वर्षीय धनखड़ का कार्यकाल कई अहम संसदीय पलों का गवाह रहा। वे राज्यसभा के सभापति भी थे और उन्होंने संसद में विभिन्न राजनीतिक मतभेदों के बीच संवाद और संतुलन की भूमिका निभाई। बीते रविवार को ही उन्होंने उम्मीद जताई थी कि “मॉनसून सत्र बहुत उपयोगी होगा”— लेकिन महज 24 घंटे बाद उनका पद छोड़ना चौंकाने वाला रहा।
राजनीतिक हलचल और सवाल
धनखड़ के अचानक इस्तीफे से सियासी हलचल तेज हो गई है। संसद का 32 दिवसीय सत्र आज ही शुरू हुआ था और विपक्ष, सरकार से कई ज्वलंत मुद्दों पर जवाब मांग रहा है। ऐसे समय में उपराष्ट्रपति के गैर-मौजूद रहने से सदन की कार्यवाही और नई नियुक्ति को लेकर अटकलें तेज हैं।
अनुभव और संतोष की झलक
धनखड़ ने अपने कार्यकाल में देश की अर्थव्यवस्था में “अभूतपूर्व प्रगति एवं वैश्विक उपलब्धियों” को देखने एवं उसका हिस्सा बनने को संतोषजनक बताया। उन्होंने भारत के उज्ज्वल भविष्य में अटूट विश्वास जताया और देशवासियों से मिले समर्थन को अपनी सबसे अमूल्य स्मृति कहा।
आगे क्या?
अब नज़रें इस पर टिकी हैं कि राष्ट्रपति अगले उपराष्ट्रपति की नियुक्ति के लिए एक प्रक्रिया कब और किस तरह शुरू करेंगी। वहीं, संसद भवन के गलियारों में अगले अध्यक्ष के नाम को लेकर जिज्ञासा बनी हुई है।
यह घटना, न सिर्फ संसदीय कार्यवाही के लिहाज से, बल्कि राजनीति के आज के दौर में स्थिरता और नेतृत्व की निरंतरता को लेकर भी एक बड़ा सवाल खड़ा करती है।