वाराणसी की 100 साल पुरानी चाची की दुकान और पहलवान लस्सी की दुकान पर चला बाबा का बुलडोजर !

By: News Desk

On: Wednesday, June 18, 2025 12:27 PM

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Baba’s bulldozer ran on 100 year old aunt’s shop and wrestler’s lassi shop in Varanasi!

उत्तर प्रदेश, वाराणसी में 100 साल पुरानी चाची की कचौड़ी दुकान और दशकों पुरानी पहलवान लस्सी की दुकान को अतिक्रमण हटाने के अभियान के तहत रातों-रात बुलडोजर चलाकर गिरा दिया गया। ये प्रतिष्ठान शहर की सांस्कृतिक पहचान थे।

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में शहर की दो सबसे प्रतिष्ठित और प्रिय भोजनालय सौ साल पुरानी चाची की दुकान और दशकों पुरानी पहलवान लस्सी की दुकान को रात के अंधेरे में बुलडोजर चलाकर ध्वस्त कर दिया गया। यह कार्रवाई शहर में अतिक्रमण हटाने के अभियान के तहत की गई, जिसमें लंका चौराहा स्थित इन दोनों दुकानों को लहरतारा से भिखारीपुर तिराहा और भेलूपुर विजया मॉल तक चार लेन के विस्तार के लिए रास्ता बनाने के लिए गिराया गया।

लोक निर्माण विभाग (PWD) ने बताया कि दुकानदारों को पिछले महीने कई बार नोटिस दिए गए थे, लेकिन क्षेत्र खाली न करने पर लंका के रविदास गेट के पास 24 से अधिक प्रतिष्ठानों पर तोड़फोड़ की गई।

चाची की दुकान: बनारस की सांस्कृतिक पहचान

1915 में स्थापित चाची की दुकान बनारस की सबसे प्रसिद्ध कचौड़ी की दुकान थी, जहां हर दिन लोगों की लंबी कतारें लगती थीं। यहां की कचौड़ी और कद्दू की सब्जी के स्वाद के साथ-साथ चाची की मशहूर गालियां भी लोगों को आकर्षित करती थीं।

यह दुकान संकट मोचन मंदिर के निकट, साकेत कॉलोनी, लंका में स्थित थी और सुबह 5:30 बजे से 10:30 बजे तथा दोपहर 1:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक खुलती थी।

चाची की दुकान का स्वाद बड़े-बड़े नेताओं और फिल्मी हस्तियों ने भी चखा था, जिनमें कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी और सपा सांसद डिंपल यादव शामिल हैं।

पहलवान लस्सी : स्वाद और पहचान

पहलवान लस्सी की दुकान अपने दही, चीनी, केसर और गुलाब जल के मलाईदार मिश्रण के लिए प्रसिद्ध थी। इस दुकान के देश-विदेश में प्रशंसक हैं, जिनमें अक्षय कुमार, राजेश खन्ना, संजय मिश्रा, अनुराग कश्यप जैसे फिल्मी सितारे और मनोज तिवारी, रवि किशन जैसे राजनेता भी शामिल हैं।

बनारसियों के लिए भावनात्मक क्षति

इन दोनों दुकानों का सिर्फ स्वाद ही नहीं, बल्कि वे बनारस की सांस्कृतिक आत्मा का भी हिस्सा थीं। इनके जाने से स्थानीय लोगों में गहरी निराशा और भावनात्मक क्षति महसूस की जा रही है, क्योंकि ये प्रतिष्ठान केवल भोजनालय नहीं, बल्कि बनारस की विरासत और पहचान थे।

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